महाराष्ट्र के भाषा विवाद में नीतीश राणे का मुखर बयान: हिंदुत्व और भाषा की सियासत
महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर छिड़े विवाद ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, और इस बहस में भाजपा नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नीतीश राणे ने अपने मुखर और कई बार विवादास्पद बयानों से एक नया मोड़ ला दिया है।
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के मराठी अस्मिता के मुद्दे पर एक साथ आने और कुछ अप्रिय घटनाओं के बीच, राणे ने भाषा के साथ-साथ हिंदुत्व के मुद्दे को भी इसमें जोड़ दिया है।
भाषा विवाद में नीतीश राणे की एंट्री:
मराठी भाषा को अनिवार्य करने के सरकार के शुरुआती प्रस्ताव (जिसे बाद में वापस लिया गया) और इसके बाद मराठी न बोलने पर हुई कथित मारपीट की घटनाओं ने राज्य में तनाव पैदा कर दिया था। इसी पृष्ठभूमि में, नीतीश राणे ने उन मनसे कार्यकर्ताओं को आड़े हाथों लिया जिन्होंने कथित तौर पर हिंदी भाषी दुकानदारों के साथ मारपीट की।
राणे ने स्पष्ट किया कि मराठी भाषा का सम्मान होना चाहिए, लेकिन भाषा के नाम पर किसी भी प्रकार की गुंडागर्दी या हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे मामलों में सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी और एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। यह मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के उस बयान से मेल खाता है जिसमें उन्होंने "गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं" करने की बात कही थी।
विवादित बयान और हिंदुत्व का तड़का:
हालांकि, नीतीश राणे ने अपने बयान को सिर्फ कानून-व्यवस्था तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने इस पूरे विवाद में एक नया और विवादास्पद आयाम जोड़ दिया। उन्होंने उन मनसे कार्यकर्ताओं को चुनौती देते हुए कहा कि अगर उनमें हिम्मत है तो वे उन इलाकों में जाएं "जहां दाढ़ी और गोल टोपी वाले बड़ी संख्या में हैं" और उनसे मराठी बुलवाकर दिखाएं।
राणे ने सीधे तौर पर सवाल उठाया, "गोल टोपी, दाढ़ी वाले लोग मराठी बोलते हैं क्या? जावेद अख्तर क्या मराठी में बात करता है? आमिर खान क्या मराठी में गाता है?" उन्होंने आरोप लगाया कि मराठी के नाम पर "गरीब हिंदुओं को मारा जा रहा है"। उन्होंने कहा कि अगर कोई हिंदू पर दादागिरी करेगा तो सरकार उसे छोड़ेगी नहीं और "अपनी तीसरी आंख खोलेगी।"
राणे के बयान के निहितार्थ:
- विवाद का विस्तार: राणे के बयान ने मराठी भाषा विवाद को भाषाई धरातल से उठाकर धार्मिक पहचान के मुद्दे से जोड़ दिया है, जिससे यह और अधिक जटिल हो गया है।
- आक्रामक हिंदुत्व का एजेंडा: यह भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व एजेंडे को दर्शाता है, जिसमें वे मराठी अस्मिता के मुद्दे पर भी धार्मिक पहचान का एंगल जोड़कर राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं।
- ठाकरे बंधुओं पर निशाना: अप्रत्यक्ष रूप से, यह बयान राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे पर भी निशाना है, जो मराठी अस्मिता के नाम पर एकजुट हुए हैं। राणे ने उन्हें एक विशेष समुदाय पर अपना 'दम' दिखाने की चुनौती दी है।
- ध्रुवीकरण की कोशिश: इस तरह के बयान समाज में भाषाई और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे महाराष्ट्र का सामाजिक सद्भाव प्रभावित हो सकता है।
- कानून-व्यवस्था बनाम राजनीतिक बयानबाजी: एक मंत्री होने के नाते, राणे से कानून-व्यवस्था बनाए रखने की उम्मीद की जाती है, लेकिन उनके बयान राजनीतिक बयानबाजी और उकसावे की श्रेणी में आ रहे हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है।
निष्कर्ष:
नीतीश राणे के बयान ने महाराष्ट्र के भाषा विवाद में एक विवादास्पद और ध्रुवीकरण वाला तत्व जोड़ दिया है। जहां एक ओर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुंडागर्दी बर्दाश्त न करने की बात कहकर कानून-व्यवस्था पर जोर दिया है, वहीं नीतीश राणे ने अपनी टिप्पणी से इस बहस को एक अलग ही दिशा दे दी है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उनके इस बयान का महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या यह भाषाई विवाद को और अधिक जटिल और संवेदनशील बनाता है।