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राज ठाकरे का विवादित बयान: 'मारो, पर वीडियो मत बनाओ' - कानून-व्यवस्था और राजनीति पर सवाल

मुंबई, ५ जुलाई २०२५: महाराष्ट्र की राजनीति में 'मराठी मानुष' की अस्मिता के प्रबल पैरोकार और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे एक बार फिर अपने एक विवादित बयान को लेकर सुर्खियों में हैं।

हाल ही में उद्धव ठाकरे के साथ एक मंच पर आने के बाद, 'मराठी विजय दिवस' रैली में दिया गया उनका यह बयान कि "आप किसी को मारें तो उसका वीडियो न बनाएं, इसे चुपचाप करें," विभिन्न हलकों में तीखी बहस छेड़ गया है।

 

यह बयान ऐसे समय में आया है जब महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को अनिवार्य किए जाने के सरकारी फैसले (जिसे बाद में वापस ले लिया गया) पर राजनीतिक घमासान जारी है। राज ठाकरे ने अपने भाषण में मराठी भाषा के प्रति उदासीनता दिखाने वालों पर निशाना साधा और मीरा रोड में हुई हालिया घटना का भी जिक्र किया, जहां मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा कथित तौर पर एक फास्ट-फूड कर्मचारी को मराठी न बोलने पर पीटा गया था।

 

राज ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा, "बेवजह किसी को मत मारो, लेकिन अगर कोई ज्यादा नाटक करता है, तो उसके कान के नीचे जरूर बजाओ। और अगली बार जब किसी को पीटो, तो उसका वीडियो मत निकालो।" उनका यह निर्देश न केवल हिंसा को एक हद तक जायज ठहराता है, बल्कि वीडियो रिकॉर्डिंग से बचने की सलाह देकर कानून के शिकंजे से बचने या सार्वजनिक निंदा से बचने का एक अप्रत्यक्ष संकेत भी देता है।

यह बयान कई गंभीर सवाल खड़े करता है:

 

  • कानून-व्यवस्था पर असर: एक प्रमुख राजनीतिक नेता द्वारा इस तरह का बयान सीधे तौर पर कानून-व्यवस्था को चुनौती देता है। यह लोगों को अपने हाथ में कानून लेने और निजी तौर पर न्याय करने के लिए उकसा सकता है, जिससे समाज में अराजकता बढ़ सकती है।

 

  • हिंसा को बढ़ावा: यह बयान हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है और असहमति या भाषाई मतभेदों को शारीरिक बल से निपटाने का संदेश देता है, जो एक स्वस्थ लोकतांत्रिक समाज के लिए खतरनाक है।

 

  • डिजिटल युग में पारदर्शिता: आज के डिजिटल युग में, जब हर घटना का वीडियो बनाना आम हो चुका है, राज ठाकरे का यह कहना कि 'वीडियो मत बनाओ' पारदर्शिता और जवाबदेही से बचने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। यह किसी भी गलत काम को छिपाने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

 

  • राजनीतिक संदेश: यह बयान मराठी अस्मिता के नाम पर आक्रामक रुख अपनाने की मनसे की पुरानी रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है। हालांकि, यह देखना होगा कि इस तरह के बयान से उन्हें कितना राजनीतिक लाभ मिलता है और समाज इसे किस रूप में लेता है।

 

महाराष्ट्र की राजनीति में क्षेत्रीय पहचान और भाषा का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है। ऐसे में किसी भी नेता द्वारा दिए गए भड़काऊ बयानों से सामाजिक सौहार्द बिगड़ने का खतरा रहता है। राज ठाकरे का यह बयान एक बार फिर राजनीतिक दलों और समाज को आत्ममंथन करने पर मजबूर करता है कि क्या राजनीतिक हितों के लिए हिंसा की अप्रत्यक्ष वकालत करना सही है और क्या इससे कानून का राज कमजोर नहीं होता। आने वाले दिनों में इस बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और तेज होने की संभावना है।

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By vasu dev
July 5, 2025
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